Kargil War Hero Digendra: भारत मां के लिए देश के कई वीर जवानों ने बिना कुछ सोचे-समझे अपनी जान की कुर्बानी दी है। भारत माता की खातिर शहीद होना जवानों के लिए सौभाग्य की बात होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत मां का एक ऐसा भी बेटा था, जिसने 5 गोली लगने के बावजूद भी पाकिस्तानी मेजर की गर्दन और पाकिस्तान सेना के 48 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था।
जी हां, हम बात कर रहे हैं कोबरा दिगेंद्र कुमार (Kargil War Hero Digendra) की। दिगेंद्र कुमार देश के वो हीरो हैं, जिन्हें 30 साल की उम्र में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने देश के दूसरे सबसे बड़े गैलेंट्री अवॉर्ड महावीर चक्र से नवाजा था।
3 मई 1999 को हुए कारगिल युद्ध के दौरान दिगेंद्र कुमार ने अपनी टीम के साथ मिलकर 48 पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर देश को दुश्मनों के हाथों से बचाया था। पांच गोलियां लगने के बावजूद भी दिगेंद्र कुमार ने तोलोलिंग की चोटी पुन: फतह की और 13 जून की प्रभात बेला में तिरंगा लहरा दिया था।
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कुछ ऐसा था Kargil War Hero Digendra का सफर
दिगेंद्र का जन्म राजस्थान के सीकर जिले की नीमकाथाना तहसील के एक गांव में जाट परिवार में हुआ था। दिगेंद्र बचपन से सैन्य माहौल में पले-बढ़े। उनके नाना स्वतंत्रता सेनानी थे तो पिता भारतीय सेना के वीर योद्धा रहे। दिगेंद्र के पिता ने 1947-48 के दौरान एक अहम भूमिका निभाई थी। युद्ध के दौरान शिवदान सिंह के जबड़े में 11 गोलियां लगी थीं। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी थी। अपने पिता से प्रेरित दिगेंद्र कुमार 2 राजपूताना राइफल्स में भर्ती हो गए थे।
Kargil War Hero Digendra: पहले ही ऑपरेशन से बने हीरो
राजपूताना राइफल्स में भर्ती होने के दो साल बाद दिगेंद्र कुमार को 1985 में श्रीलंका के जंगलों में प्रभाकरण के तमिल टाइगर्स के खिलाफ अभियान के लिए गई इंडियन पीस कीपिंग फोर्स में भेजा गया। इस ऑपरेशन के दौरान उन्होंने अपनी बहादुरी का प्रमाण देते हुए एक ही दिन में आतंकियों को मार गिराया, दुश्मन का गोला-बारूद का ठिकाना नष्ट किया और उनके कब्जे से पैराट्रूपर्स को छुड़ाया।
साल 1999 में दिगेंद्र कुमार उर्फ कोबरा सेना के बेहतरीन कमांडों में से एक माने जाने लगे थे। कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित तोलोलिंग की चोटी और पोस्ट जीता और उसपर भारत का तिरंगा भी फहराया। इस अभियान के दौरान उन्हें पांच गोली लगी, लेकिन वे रुके नहीं। उनकी राह में जो भी आया, उसका वो खात्मा करते गए।
पाकिस्तानी सेना मेजर अनवर खान की उड़ाई गर्दन
जंग के दौरान दिगेंद्र और उनकी टीम ने पूरे 11 बंकर तबाह कर दिए थे। उनके आखिरी साथी सरदार सुमेर सिंह राठौड़ को भी गोली लग चुकी थी। फिर उसकी एलएमजी लेकर दिगेंद्र पहाड़ी की ओर आगे बढ़े, तब उन्हें रास्ते में पाकिस्तानी सेना मेजर अनवर खान दिखाई दिया। दोनों का आमना-सामना हुआ। दिगेंद्र एलएमजी से एक ही गोली चला पाए थे, तभी अनवर खान ने दिगेंद्र के पांव पर गोली मारी। इसके बाद अनवर ने दिगेंद्र के ऊपर झपट्टा मारा लेकिन दिगेंद्र ने उसका गला पकड़ कर रखा और अपना खंजर निकालकर झटके से उसकी गर्दन काट दी।
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