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सोशल मीडिया अभियान का चुनावों में कितना असर?

impact of social media campaign on elections

डिजिटल इंडिया के साथ भारत विकास के पथ पर अग्रसर है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को नया भारत बनाने की मुहिम में कोई कसर नहीं छोड़ी है। न्यू इंडिया में सोशल मीडिया का अहम रोल है। सोशल मीडिया जिसने हमारी डेली लाइफ को बहुत आसान कर दिया है। वाट्सअप, फेसबुक, इंस्टाग्राम हो या टेलेग्राम या ट्वीटर। हर कोई अपनी बात झट से लिखता है और फटाफट एक दो क्लिक पर पोस्ट करके उस पर हजारों लाइक्स बटोर लेता है या ट्रोल हो जाता है। इन प्रभावी सोशल मीडिया ऐप्स का सही इस्तेमाल अगर किया जाए तो फायदा ही फायदा भी होगा।

जैसे आजकल के राजनेता और उनकी पार्टियां करती हैं। इस काम के लिए राजनीतिक पार्टियां एक पूरी व्यवस्था बनाकर चलती हैं। पूरा एक सिस्टम काम करता है। सोशल मीडिया की रणनीति तय होती है कांटेट डिसाइड होता है। हर पोस्ट के लिए समय निर्धारित किया जाता है। किस समय फेसबुक, ट्वीटर और बाकी प्लेटफार्म पर कौन सा पोस्ट जाएगा। उसका क्या इम्पैक्ट होगा ये सारी बातों पर विचार करने के बाद ही पोस्ट अपलोड किया जाता है।

अब सबसे आसान है व्हाट्सएप ग्रुप, जो दिन रात काम करता है। समय की कोई पाबंदी नहीं होती। जानकारों की मानें तो 80 से 90 लाख करीब व्हाट्सएप ग्रुप प्रभावी तरीके से काम कर रहे हैं। भाजपा अपनी बातों को रखने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप का बेहतरीन तरीके से सहारा ले रही है। शासक का काम होता है अपनी बात को बेहतरीन तरीके से आसान भाषा में जन-जन तक पहुंचाना, जिससे जनता और सरकार के बीच कोई कन्फ्यूजन न हो, इसलिए उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम आर डब्लू ए जैसे छोटे छोटे ग्रूप से लोग एक दूसरे के टच में रहते हैं।

एक व्यक्ति जो कॉन्टेंट का फार्मेट बनाता है और एक व्यक्ति कॉन्टेंट को विस्तार रुप देता है। फिर जितने रजिस्टर्ड ग्रूप्स होते हैं उन ग्रूप्स पर वहां से कॉन्टेंट प्रॉपर फॉर्मेट में बनाकर अपलोड कर दिया जाता है। फिर प्रत्येक एडमिन के पास जितने ग्रूप बने हुए होते हैं। उन सभी ग्रूप्स पर वो पोस्ट कर दी जाती है। उसमें जुड़े 200 से लेकर 500 या उससे भी ज्यादा लोग जो जुड़े होते हैं वो सभी उस पोस्ट को फारवर्ड करते हैं। लाइक, शेयर भी करना एक प्रक्रिया के अंतर्गत आता है। साथ ही आप जो देखते हैं कि किसी पोस्ट पर लेकर दो या उससे ज्यादा लोग बहस या चर्चा कर रहे हैं यह भी रणनीति के तहत ही आता है। उसके अलावा जो ग्रूप में जुड़े लोग होते हैं। उन्हें पसंद आता है तो वो अपने-अपने बनाए ग्रूप में फारवर्ड करते हैं। इसी तरह यह प्रक्रिया निरंतर अबाध गति से चलती रहती है और सरकार की बात जनता तक बहुत ही आसानी से पहुंच जाती है।

इसमें प्रधानमंत्री के भाषण से लेकर गुणगान सब शामिल होता है, जितने महत्वपूर्ण इंवेट्स होते हैं। उन सबको हाइलाइट करना और जन-जन तक पहुंचाने की प्रक्रिया के जरिए ही भाजपा अपनी रणनीति में सफल हो रही है। इसमें जनता के लिए सही और गलत का फर्क करना बहुत मुश्किल होता है। किस पोस्ट का अर्थ क्या निकलना है। उसकी भाषा पर निर्धारित करता है। इसलिए भाषा का इन पोस्टों पर बहुत ख्याल रखा जाता है। इसलिए कहा जाता है कि बिना पढ़े बिना समझे उसे आंखें बंद करके फारवर्ड नहीं करना चाहिए। फेसबुक पर जो कमेंट्स आप और हम देखते हैं वो सब निर्धारित होता है। आमतौर पर लोगों को यही बात समझ नहीं आती है कि कौन सा ऑफिशियल है और कौन सा अनऑफिशियल। लोग किसी भी सोशल मीडिया पर कुछ भी देखते हैं। उसे सच मान लेते हैं औरआंख मूंदकर जो अच्छा लगता है उसे आगे फारवर्ड कर देते हैं। इसी तरह पूरी टीम एक राज्य से दूसरे राज्य तक अपनी बात छोटे-छोटे ग्रूप के जरिए पहुंचाने का काम करती है।

अब आपके मन में आ रहा होगा कि सभी राजनीतिक दल क्या एक ही फार्मेट पर काम करते हैं और अगर एक ही फार्मेट में काम करते हैं तो किसी का प्रभाव ज्यादा तो किसी का प्रभाव कम कैसे हो जाता है। काम की रणनीति, आपके साथ जुड़े लोगों की डेडिकेशन ये सभी चीजें काम करती है। मैसेज भले ही किसी एक प्लेटफार्म से शुरु हो पर हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है उसे एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म तक पहुंचाने और वायरल करना उसका काम है। इसके बाद हम और आप उस पोस्ट को लेकर बहस करते हैं या सच मान लेते हैं और समाज में फिर देश में बह बात एक मुद्दा का रुप ले लती है और कभी-कभी आंदोलन का भी। इसलिए सोशल मीडिया पर आंख मूंदकर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए।

सोशल मीडिया अभी सरकार के अनुरूप किसी दायरे में नहीं आता है। सरकार का कोई नियम कानून अभी इस पर पूरी तरह लागू नहीं हुआ है। इसलिए सोच समझकर पोस्ट डालना चाहिए और सोच समझकर ही किसी की पोस्ट आगे बढ़ानी चाहिए। तभी हम सोशल मीडिया का सही उपयोग कर सकेंगे अन्यथा यह एक बेलगाम घोड़े की तरह साबित हो सकता है।


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