सुप्रीम कोर्ट 26 अप्रैल को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के जरिए डाले गए वोटों के साथ वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर्चियों का मिलान वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाएगा। इसके बाद ये साफ हो जाएगा कि चार जून को होनी वाली काउंटिंग के दौरान ईवीएम के वोटों से वीवीपैट की पर्चियों का मिलान होगा या फिर नहीं।
दरअसल, 24 अप्रैल को इस मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। कोर्ट ने कहा कि “हम चुनावों को कंट्रोल नहीं कर सकते, हम किसी अन्य संवैधानिक प्राधिकरण के कामकाज को नियंत्रित नहीं कर सकते। सिर्फ संदेह के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। हमारे कुछ सवाल थे और हमें जवाब मिल गए। फैसला सुरक्षित रख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम की कार्यप्रणाली के कुछ खास पहलुओं के बारे में चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा था। चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारी ने अदालत के सारे सवालों के जवाब भी दिए।
बता दें कि इस केस में याचिकाकर्ताओं की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण,गोपाल शंकरनारायण और संजय हेगड़े पैरवी कर रहे हैं। प्रशांत एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की तरफ से हैं। वहीं, चुनाव आयोग की ओर से अब तक एडवोकेट मनिंदर सिंह और केंद्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मौजूद रहे।
इससे पहले 18 अप्रैल को जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने चुनाव आयोग से पूछा था कि क्या वोटिंग के बाद वोटर्स को VVPAT से निकली पर्ची नहीं दी जा सकती है। इस पर चुनाव आयोग ने कहा- वोटर्स को VVPAT स्लिप देने में बहुत बड़ा रिस्क है। इससे वोट की गोपनीयता से समझौता होगा और बूथ के बाहर इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल दूसरे लोग कैसे कर सकते हैं, हम नहीं कह सकते।