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नरसिम्हा राव देशभक्त राजनेता या करप्ट PM?

Narasimha Rao | pm | Rajiv Gandhi | congress | shreshth bharat

साल 1993… गर्मी से भरे जून के महीने में एक हर्षद मेहता नाम का ब्रोकर देश के सबसे बड़े वकील राम जेठ मलानी के साथ एक बड़ा खुलासा करता है। वो Press Conference करके ये दावा करता है कि 4 नवंबर 1991 को वो अपने भाई अश्विन मेहता समेत और दो लोगों के साथ प्रधानमंत्री आवास जाता है और उन्हे एक करोड़ रुपये रिश्वत देता है। हर्षद मेहता के मुताबिक वो एक बड़े सूटकेस में सारा कैश लेकर गया था। मेहता के इस दावे ने उस वक्त सियासी भूचाल ला दिया था। वो जिस पर आरोप लगा रहा था, वो कोई और नहीं, देश के नौवें प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव थे।

उसी साल यानि 1991 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राजीव गांधी अपने दिल्ली वाले दफ्तर में बैठे थे। उनके सचिव विंसेंट जॉर्ज ने अंदर आकर कहा कि नरसिम्हा राव काफी देर से आपका इंतजार कर रहे हैं। राजीव ने उन्हे बुलवाया और कहा, आप बूढ़े हो गए हैं। अब आपको चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। बात भी ठीक थी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नरसिम्हा राव 70 साल के हो चुके थे। पिछली सरकारों में गृहमंत्री, रक्षामंत्री और विदेश मंत्री जैसे बड़े पद भी संभाल चुके थे, लेकिन वो राजीव की ये बात सुनकर काफी आहत हुए। राव साहब काफी शांत स्वभाव के थे। वो ज्यादा बोलते नहीं थे। इसलिए राजीव की बात सुन कर चुपचाप वहां से चले गए और राजनीति छोड़कर अपने होम टाउन हैदराबाद जाने की तैयारी करने लगे।

लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। वो हैदराबाद जाने की तैय़ारी कर ही रहे थे कि ज्योतिष का शौक रखने वाले एक अधिकारी ने उनसे कहा – राव साहब,  मुझे लगता है आपका भाग्य बदलने वाला है। कुछ महीने रुक जाइए,  वरना वापस दिल्ली आना पड़ेगा। उस वरिष्ठ अधिकारी की बात सच साबित हुई। 21 मई 1991 को अचानक राजीव गांधी की हत्या हो गई और राजनीति छोड़कर रिटायरमेंट लेने जा रहे नरसिम्हा राव देश के नौंवे प्रधानमंत्री बन गए। दरअसल, राजीव गांधी की मौत के बाद पूरे देश की सहानुभूति कांग्रेस के साथ थी। इसलिए लोकसभा चुनाव में अकेले कांग्रेस को 232 सीटें मिली थीं। सोनिया गांधी उस वक्त राजनीति में आने को बिलकुल तैयार नहीं थीं। कांग्रेस के सामने फिर वही संकट खड़ा था। आखिर किसे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाया जाए। कांग्रेस के सीनियर नेताओं में फिर होड़ मच गई। हर कोई अपने पक्ष में माहौल बनाने लगा। उसी साल 17 जून को टाइम्स ऑफ इंडिया में महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम शरद पवार के हवाले से एक खबर छपी कि पवार तब कांग्रेस में हुआ करते थे। खबर में लिखा था कि महाराष्ट्र के सांसद तय करेंगे कि दिल्ली में देश का नेतृत्व कौन करेगा। अगले दिन 18 जून को फिर शरद पवार को पीएम बनाने से संबंधित खबर छपी। महाराष्ट्र से दिल्ली तक इस तरह का माहौल बनाया जाने लगा जैसे पीएम पद के लिए शरद पवार ही सबसे बड़े दावेदार हैं। इस बारे में पीवी नरसिम्हा राव के पुराने दोस्त और लेखक संजय बारू अपनी किताब ‘1991-How P.V. Narasimha Rao Made History’ में लिखते हैं। मैंने राव साहब से शरद पवार को लेकर सवाल किया तो उन्होने कहा टाइम्स ऑफ इंडिया के एडिटर दिलीप पडगांवकर, राजदीप सरदेसाई सब महाराष्ट्र के हैं। इसलिए अपने आदमी को बढ़ा रहे हैं। दिल्ली में शरद पवार की कोई हवा नहीं है।

उधर कांग्रेस में पीएम उम्मीदवार को लेकर महामंथन चल रहा था। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह अपनी किताब ‘ONE LIFE IS NOT ENOUGH’ में लिखते हैं कि सोनिया गांधी ने अपने सलाहकार PN हक्सर से पूछा कि कांग्रेस की तरफ से कौन PM के लिए BEST CANDIDATE है। तब हक्सर ने कहा कि सीनियर नेता के रूप में देखें तो उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा परफेक्ट हैं। इसके बाद दो लोगों को शंकरदयाल शर्मा से बात करने की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन शंकरदयाल ने कहा – प्राइम मिनिस्टरी FULL TIME JOB है और मेरी खराब सेहत के साथ बढ़ती उम्र मुझे देश के सबसे महत्वपूर्ण ऑफिस को संभालने की इजाज़त नहीं देती। इसके बाद PN हक्सर ने सोनिया को पीवी नरसिम्हा राव का नाम सुझाया।

पीवी नरसिम्हा राव के बारे में नटवर सिंह अपनी किताब में लिखते हैं। राव एक साधारण परिवार से आए व्यक्ति थे। उनकी अध्यात्म और धर्म में गहरी पकड़ थी। वो कई भाषाओं को जानते थे और बेहतरीन चिंतक थे।

राव की एक और खूबी के बारे में पत्रकार विनय सीतापति लिखते हैं। सोनिया गांधी को लगता था कि राव अपनी जगह जानते हैं। सरकार और संगठन में लंबे समय तक रहने के दौरान उन्होंने कभी गांधी परिवार के खिलाफ बगावती तेवर नहीं दिखाए थे और यही बात उनके पक्ष में जाती थी। जबकि शरद पवार और एनडी तिवारी इस पैमाने पर खरे नहीं उतरते थे। इसी महामंथन के बीच 29 मई 1991 को फिर CWC की मीटिंग हुई जिसमें नरसिम्हा राव को कांग्रेस प्रेसिडेंट चुना गया। कांग्रेस के एक खेमे समेत तब देश के वरिष्ठ पत्रकारों का भी ये मानना था कि जब तक सोनिया खुद राजनीति में एक्टिव नहीं हो जातीं, सिर्फ तब तक के लिए राव साहब को आगे किया गया था। इस तरह कांग्रेस प्रेसिडेंट चुने जाने के बाद 21 जून के दिन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने पीवी नरसिम्हा राव को देश के नौवें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई।

पीवी नरसिम्हा राव एक अनुभवी नेता थे लेकिन पीएम बनने के साथ ही उनके सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गईं। उन्होंने तब तक के अपने कार्यकाल में स्वास्थ्य, शिक्षा और विदेश मंत्रालय देखे थे। फाइनेंस का उन्हें काफी कम अनुभव था और उस वक्त देश भयंकर आर्थिक संकट से गुज़र रहा था। उनके पीएम बनने से पहले चंद्रशेखर देश का सोना गिरवी रख चुके थे। लिहाज़ा राव साहब के पीएम पद की शपथ लेने से एक दिन पहले 20 जून की शाम कैबिनेट सेक्रेटरी नरेश चंद्र उनसे मिलने पहुंचे। नरेंद्र चंद्र ने 8 पेज की एक फाइल नरसिम्हा राव को दी। फाइल में लिखा था कि जब नरसिम्हा राव शपथ लेंगे तो उन्हें सबसे पहले क्या करना होगा। लेकिन फाइल पढ़ते ही उनके तो होश उड़ गए। उन्होने नरेश चंद्र से पूछा, क्या देश की अर्थव्यवस्था इतनी खराब हो चुकी है। जवाब मिला- नहीं सर,, इससे भी ज्यादा खराब है। विदेशी मुद्रा भंडार की हालत इतनी खराब है कि हमारे पास करीब 90 करोड़ डॉलर की ही विदेशी मुद्रा बची है, जिससे सिर्फ 2 हफ्ते का आयात खर्च पूरा हो सकता है।

विनय सीतापति के मुताबिक, सरकार बनने से पहले ही पीवी नरसिम्हा राव ने तय कर लिया था कि वे एक एक्सपर्ट अर्थशास्त्री को वित्त मंत्री बनाएंगे। इसके लिए उन्होंने तुरंत अपने खास दोस्त पीसी एलेक्जेंडर से बात की। एलेक्जेंडर ने उन्हें RBI के पूर्व गवर्नर और London School Of Economics के डायरेक्टर IG Patel को वित्त मंत्री बनाने को कहा, लेकिन उन्होने मना कर दिया। पटेल की मां उस वक्त बीमार चल रही थीं। इस वजह से वो वडोदरा नहीं छोड़ना चाहते थे। लेकिन पटेल ने उन्हे एक नाम सुझाया वो नाम था UGC के चेयरमैन डॉ. मनमोहन सिंह का। पीवी ने तुरंत मनमोहन सिंह की तलाश शुरू कर दी। उनके घर फोन लगाया तो पता चला कि वे यूरोप गए हैं और आज रात को ही लौटेंगे। सुबह फोन किया तो साहब सो रहे थे। नौकर ने उठाने से मना कर दिया। शपथ ग्रहण का दिन आ चुका था। लिहाज़ा शपथ लेने से तीन घंटे पहले राव साहब ने मनमोहन सिंह के UGC ऑफिस में ही फोन लगाया और बात की राव साहब ने सारी कंडीशन बताते हुए उन्हें वित्त मंत्री बनने का ऑफर दिया और कहा अगर हम सक्सेस हुए तो इसका क्रेडिट हम दोनों को मिलेगा लेकिन अगर फेल हुए तो आपको इस्तीफा देना पड़ेगा। अब मनमोहन सिंह भावी प्रधानमंत्री को कैसे मना कर सकते थे। उन्होने हां तो कर दी और जल्द ही देश को आर्थिक संकट से निकालने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए जो कामयाब भी हुए। देश ने जल्द ही अपना गिरवी रखा सोना भी वापस खरीद लिया।

राव सरकार के दौरान ही 6 दिसंबर 1992 के दिन बाबरी मस्जिद को गिराया गया था। इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी किताब Beyond The Lines में लिखते हैं कि इस विध्वंस में नरसिम्हा राव की मिली-भगत थी। जब कार सेवकों ने ढांचा गिराना शुरू किया तो पीवी पूजा पाठ करने लगे और जब ढांचा पूरी तरह गिर गया, तभी वे पूजा से उठे। कुलदीप नैयर के मुताबिक, समाजवादी नेता मधु लिमये ने उन्हे बताया था कि पूजा के दौरान जब पीवी के एक सहयोगी ने उनके कान में बताया कि ढांचा गिर गया है। तभी उन्होंने पूजा खत्म कर दी थी। ढांचा गिराए जाने के बाद पीवी ने पत्रकारों को बुलाया और कहा इस मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है। राव ने कहा कि यूपी के सीएम कल्याण सिंह ने उन्हें धोखे में रखा था। कुलदीप नैयर कहते हैं कि जब मैंने उनसे पूछा कि रातों-रात वहां एक छोटा सा मंदिर कैसे खड़ा हो गया है? तो पीवी ने कहा – मैं CRPF की एक टुकड़ी भेजना चाहता था, लेकिन मौसम खराब होने की वजह से विमान नहीं जा सका। फिर राव ने कहा ये मंदिर ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा। वहीं कुछ लोगों का दावा ये भी था कि नरसिम्हा राव हिंदुओं की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते थे, इसीलिए उन्होने मंदिर हटाने के निर्देश नहीं दिए।

इसी वजह से राव की छवि कट्टर हिंदुवादी नेता की बनती जा रही थी जो कांग्रेस के डीएनए से मैच नहीं खाती थी। राव के पीएम बनने के बाद से ही सोनिया गांधी को लगने लगा था कि वो नेहरू-गांधी परिवार के महत्व को लगातार कम कर रहे हैं। दोनों नेताओं के बीच खटास आने की एक वजह और भी थी। दरअसल, सोनिया गांधी के निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज को राज्यसभा भेजा जाना था। उधर मार्गरेट अल्वा भी चौथी बार राज्यसभा जाने की तिगड़म बिठा रहे थे, लेकिन पार्टी के कई नेता अल्वा का विरोध कर रहे थे। पीवी रूस यात्रा पर जाने वाले थे, लेकिन अल्वा के नामांकन को लेकर संशय में थे। लिहाज़ा उन्होंने राज्यसभा का मामला खत्म करने के लिए सीधे सोनिया गांधी को फोन लगाया। सोनिया ने उन्हे कुछ संकेत दिए, लेकिन साफ तौर पर कुछ नहीं कहा। जब विदेश से राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम की लिस्ट भारत आई तो मार्गरेट अल्वा का नाम तो था, लेकिन विंसेंट जॉर्ज का नाम गायब था। इसके बाद से सोनिया और नरसिम्हा राव में खाई बढ़ती चली गई और राव के अंत समय तक बरकरार रही। राव के परिवार का दावा है कि 2004 में जब नरसिम्हा राव का निधन हुआ तो उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया गया। इस बारे में विनय सीतापति लिखते हैं – राव के बेटे प्रभाकर कहते हैं कि हमें महसूस हुआ कि सोनिया जी नहीं चाहती थीं कि हमारे पिता नरसिम्हा राव का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो। वो ये भी नहीं चाहती थीं कि यहां उनका मेमोरियल बने।

अब हम आपको नरसिम्हा राव से जुड़े दो किस्से बताने जा रहे हैं, जिनमें से एक में उन्हे ईमानदारी की मिसाल बताया जाता है तो दूसरे में उनपर एक करोड़ की रिश्वत लेने के आरोप लगे थे। पहले बात उन पर लगे आरोप की बात 90 के दशक की है। तब बहुत कम लोगों को पता था कि स्टॉक मार्केट किस चिड़िया का नाम है। म्यूचुअल फंड के नाम पर सिर्फ यूटीआई का सहारा था। रोजमर्रा का कारोबार ब्रोकरों के बीच तक ही सीमित था। उन दिनों स्टॉक मार्केट को गैंबलिंग की तरह देखा जाता था। लोग स्टॉक मार्केट और गैंबलिंग में ज़्यादा फ़र्क नहीं मानते थे। ऐसे माहौल में लोअर मिडल क्लास का एक युवा स्टॉक मार्केट की तरफ कदम बढ़ाता है। उसका नाम था- हर्षद मेहता… वो 1981 में मुंबई में एक ब्रोकरेज फर्म से जुड़ा और 1990-91 तक एक जाना-माना ब्रोकर बन गया। कुछ अगले ही साल में उसने पूरे देश में तहलका मचा दिया।

हर्षद के बारे में कहा जाता है कि उसने देश के नौजवानों को सपना देखना औऱ उन्हें पूरा करना सिखाया था, लेकिन उसने खुद गलत रास्ता चुना था। उस वक्त बैंक और आरबीआई के बीच सेटलमेंट में जो देरी थी, उसी लूपहोल का फायदा उठा कर हर्षद मेहता ने पैसा स्टॉक मार्केट में डाला और इस तरह एक बैंक का पैसा दूसरे को देने से पहले बाज़ार में लगा देता था। इस खेल में माहिर हो चुका हर्षद जिस शेयर पर हाथ रखता, वह फ़र्श से अर्श पर पहुंच जाता। सालभर में सेंसेक्स 1000 से 4500 तक पहुंच गया। मार्केट के लगातार चढ़ने से सवाल उठने लगे कि ऐसा कैसे हो रहा है। जांच हुई तो बड़ा घोटाले सामने आया। खुलासे के बाद बैंकों ने अपने बही-खाते चेक किए तो पता चला कि कई मामलों में रसीदें तक फर्जी थीं। उस स्कैम से बाज़ार को एक लाख करोड़ रुपये की चपत लगी। आरबीआई ने जांच के लिए जानकीरमण कमिटी बनाई और फिर तमाम कायदे-कानून दुरुस्त किए जाने लगे। जांच पड़ताल के बाद हर्षद मेहता पर 600 से ज्यादा मुकदमे हुए। उसी दौरान उसने एक सनसनीखेज दावा किया और कहा कि 4 नवंबर 1991 को वह अपने भाई अश्विन मेहता और दो अन्य लोगों के साथ पीएम आवास गया और वहां उसने पीएम नरसिम्हा राव को एक करोड़ रुपये की रिश्वत दी।

उसके इस बयान से पूरे देश में सियासी भूचाल आ गया था। अपनी सफाई में सरकार की तरफ से कई दस्तावेज पेश किए गए और बताया कि हर्षद के तमाम दावे झूठे हैं। वो पीएम से मिला ही नहीं। हर्षद ने प्रेस कॉर्फ्रेंस करके माहौल तो पूरा बनाया लेकिन साबित कुछ नहीं कर पाया उलटा अपने ही बुने जाल में फंस गया। हर्षद के दावों में एक नहीं कई झोल थे। इसीलिए जांच के बाद सीबीआई ने उसके सारे आरोप निराधार करार दिए गए और पीएम को क्लीन चिट दी गई।

अब दूसरा किस्सा पीएम नरसिम्हा राव की ईमानदारी से जुड़ा है। पूर्व राष्ट्रपति APJ अब्दुल कलाम ने 24 जनवरी 2013 को RN KAO MEMORIAL में मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे थे। वहां उन्होने नरसिम्हा राव की ईमानदारी से जुड़ा एक किस्सा सुनाया था। कलाम के मुताबिक, साल 1996 के आम चुनाव के नतीजों से ठीक दो दिन पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उनसे कहा कि APJ आप अपनी टीम को परमाणु परीक्षण के लिए तैयार रखिए और विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी से जाकर मिलिए। उन्हें इस कार्यक्रम के बारे में बताइए। कलाम के मुताबिक, राव साहब चाहते थे कि अगर उनकी सरकार चली भी जाती है तो आने वाले प्रधानमंत्री देश के लिए जरूरी Nuclear Program को जारी रख सकें। कलाम ने कहा कि उनका ये काम ये बताता है कि नरसिम्हा राव एक देशभक्त राजनेता थे


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